कितना विचित्र लगता है कि राहुल अभी भी सफलता के इंदिरा-कालीन लटकों झटकों के वल पर ही राजनीतिक स्टंटबाजी में मुग्ध हैं ,जब कि मतदाता इन्ही सब से ऊब कर विकल्प की तलाश में बीजेपी के बास्तविक और ठोस राजनीति की पसंद तक पहुंचा।अव इलाइट,सितारा राजनीति नकार के लक्ष्य पर है पर हां ,भारत का मुसलमान अभी भी देश की मुख्य मनोभूमि के खिलाफ ऐसी ही राजनीति और राजनीतिज्ञों को,नितांत मजहबी कुत्सा के चलते,पसंद कर रहा है जो कि अमेठी से वायनाड को पलायन ने पूरी तरह सिद्ध किया।क्या कांग्रेस कोट के ऊपर से जनेऊ संस्करण पर ही भरोसा करके वहुसंख्यक वोटर को चूतिया वनाने में सफल होने के सपनों तक रह जाये गी।भाई- अपने अंधे समर्थकों को इतना निराश भी न करें।

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