कोविड-19 हमें जीवन की क्षण-भंगुरता की शाश्वत सत्यता से एक बार फिर से याद दिलाने का माध्यम वन गया है।माना जा सकता है कि हम भौतिक प्रगति के सोपानों को अपने स्केल पर किसी भी स्तर तक पहुच लें पर चीन के उदाहरण ने सिद्ध किया कि कम्यूनिज्म और डिक्टेटरशिप भी वस मुखौटे हैं जब कि प्रकृति इन मुखौटों के अंदर झांकती कुरूपता को दो पल में उजागर कर देती है।हम जीवन की उस शैली में हैं कि जिसमें भय,अकेलापन,निष्क्रियता,मृत्यु,एकरसता की ऊव,असहाय-स्थिति,इत्यादि जीवन के संपूर्ण आयाम संकुचित और पंगु से हो गये हैं।यह हमें कितनी चुनौती पूर्ण लगता है कि सारी चुनौतियां भी मूर्छित हैं।फिर भी -मोदी है तो मुमकिन.........।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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