वयोबृद्ध ,युवाओं को किसी सीमा तक पहचानता है क्यों कि वह 15 से 35 तक युवा था और स्वयं के हजारों प्रारूप उसके मन मस्तिष्क में सुरक्षित हैं,जव कि युवा बृद्ध को वहुत कम जानता है क्योंकि वह अभी बृद्ध हुआ नहीं है।एक दूसरे के संवंधों में पनपे संकट के पीछे यह सच मूल में है,जिसे हमें आंकलन में लेना ही चाहिये।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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