हम अपने अनुभवों की गठरी ,वहुत बार जैसी की तैसी किसी अपने जूनियर,पुत्र,मित्र,शिष्य या किसी के भी सिर पर रख कर कृतकार्य होने की गलती करते ,अनायास देखे जा सकते हैं,जब कि वास्तविकता यह है कि हमारे वे अनुभव ,अधिकांश बीते समय की कुछ स्म्रतियां मात्र हैं जिनका दार्शनिक पक्ष वहुत ,आज के संदर्भ मे पुराना पड़ चुका हो सकता है और जिसमें आज के युवा की वहुत सीमित या शून्य रुचि हो सकती है।आयु-सम्पन्न लोग ,इसीलिये अगली पीढ़ी को,पथ-हीन तक वताने की नादानी तक पहुंचते देखे जा सकते हैं ,हमें यह देखना होगा कि आनेवाला कल बीते कल से सदैव अधिक सुंदर होगा।हां ,मै यह बात, कोरोना के इस कठिन समय सामने ,अपने कुरूपतम भंगिमा में ,होने की सच्चाई के वाबज़ूद कहता हूं।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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