जीवन वहुत सरल है-कहने वाले ,संभवतः,जीवन को विना ठीक से देखे ,कह दे रहे हैं।हम इतना कम समय व क्षमता लेकर पैदा हुये हैं कि जीवन को समझने की इच्छा पैदा होते होते आधी जिंदगी बीत चुकती है और हम जब जीवन को देखते हैं तो वह करोड़ों करोड़ वर्षों का इतिहास संजोये मिलता है।दर्शन के प्रयत्न नाकाफी लगने लगे हैं,विज्ञान के दावे सिर्फ कुछ प्रथम उत्तरों तक सीमित हैं।अव समय वह है कि दर्शन ,विज्ञान के आगे नहीं ,पीछे है।अव हमें जीवन को समझने के लिये नये दर्शन की जरूरत है,जब कि हम सातवीं शताव्दी को ज्ञान की अंतिम शताव्दी मानने की नादानी में जीवित हैं।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें