सीपिया वरन मंगलमय तन,
जीवन-दर्शन वांचते नयन, संस्कृत सूत्रों जैसी अलकें है भाल चंद्रमा का वचपन, हल्के जमुनाये होठों पर दीये की लौ सी मुस्कानें, धूपिया कपोलों पर रोली से शुभम् लिखा चंदरिमा ने, सम्मुख हो तो आरती जगे,सुधि में हो तो चंदन चंदन। सीपिया वरन.........।श्री भारत भूषन।से साभार।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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