किसी भी प्रविधि जो स्वतंत्रता दिलाने में सहायक होती.....की तलाश में गांधी ने संपूर्ण देश की यात्रा की।उन्हों ने देखा भीषण गरीबी,दुर्वलता-शारीरिक ही नहीं मानसिक व सांस्कृतिक भी।यहां मानसिक गरीबी का अर्थ है -किसी भी युद्ध जो विदेशी सत्ता से भिड़ने के लिये जरूरी था..की सन्नद्धता के प्रति जागरूकता,उत्सुकता,तैयारी।बह गांधी को कहीं नहीं मिली।1857 की हार ने किसी विजय की संभावना,आमने सामने के आयुध -युद्ध के माध्यम से प्राप्त करने की ,पूरी तरह खत्म कर दी थी।गांधी को यह लगा कि अव सत्याग्रह-आंदोलन जो यहां की डरी,सहमी जनता के लिये अनुकूल थी,ही अंतिम विकल्प है और उन्होंने फिर वही अपनाया।नेता जी सुभाष के आह्वान पर-तुम मुझे खून दो मै तुम्हे.....कितने लोग खून देने हेतु आगे आये.....।यहां के आम आदमीं में वह खून था ही नहीं...।जो खून दे रहे थे वे डकैत कहे गये।
गांधी जी का मूल्यांकन आज ड्राइंगरूम में बैठ कर नहीं किया जा सकता,बिना तत्कालीनता को पूरा समझे।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें