जिंदगी सिर्फ बीतते समय के साथ वढ़ते बैंक बैलेंस का ही नाम नहीं है।इसमें एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान उस पलायन का है जो कुछ लोग -कड़ी शराव,कुछ लोग -माल-,कुछ लोग ऊंचे पहाड़ो,गहरी घाटियों,नक्षत्रों और कुछ गहराती शाम के आगमन में भी ढ़ूंढ़ लेने के प्रयत्नों में लगे पाये जाते हैं।जीवन का यही वर्णक्रम गीता में माया कहा गया....।और ,बच्चन, जी इसी माया को यूं स्वीकारते हैं-
तेरी दुनियां को प्यार किया है मैने। , ग्यानी ने मुझसे कहा कि यह माया है, तूने नासमझी में धोखा खाया है, रस्सी का टुकड़ा है गजरा लगता है, यह सत्य नहीं है सपने की छाया है, जादूगर यह अपराध न कहलाया है, तेरा जादू स्वीकार किया है मैने।तेरी दुनियां को........। तो मैं वस यही करने चला हूं इस व्लाग के माध्यम से।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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