भाई चारा-का संदर्भ निश्चित ही हिंदू और मुसलमान के बीच संवंधो को लेकर ही संभवतः पाकिस्तान वनने के बाद ज्यादा ही रटा जाने बाला और एक कांग्रेसी,कम्यूनिष्ट,कम्यूनल त्रिगुटी नारा है।क्या यह इस बात का संकेत नहीं कि यह भाई चारा अभी नहीं है,अन्यथा नारे की आवश्यकता ही क्या है।अगर होता तो यह निरर्थक होता।तो अगर भाई चारानहीं है तो क्या यह स्वाभाविक प्रश्न नही पैदा होता कि क्यों नहीं है।और क्या इस क्यों नहीं है की पूरी खोज-बीन,निर्णयात्मक बिंदुओं का निर्धारण और फिर उनका ही निराकरण नहीं जरूरी है।क्या इस पर व्यापक शोध नहीं होना चाहिये।क्या किसी में इतनी हिम्मत नहीं।क्या इसके पीछे किसी मजहबी घिनौन के बाहर आ जाने का भय तो नहीं।......सभी प्रश्न उत्तर चाहते हैं,बिना उत्तर खोजे यह भाई चारे के धोखे-धड़ी से कुछ फायदा नहीं होनेवाला।क्या हम इस चूतियाफंदी से बाहर आने का साहस दिखायें गे।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें