हाथरस,हाथरस......क्या यह राजनीतिक-गिद्धता घिनौन की निक्रष्टतम दुर्गंध बनकर रह जाये गी ।क्या अपराधियों का मजहब,धर्म यह फैसला करे गा कि किस आरोपित को फांसी हो किस की नहीं।क्या यह शर्म से खारिज नेता वनने के भुक्खड़ नवसिखिये चोर, बलरामपुर का रास्ता नहीं जानते।क्या इन्हे राजनीतिक संकीर्णता ने दिमागी लकबाग्रस्त कर दिया है......।सालों ,वलरामपुरमें यही दुर्घटना मुसलमानों ने की है......बह भी देखो......सेकुलरों-तुमने अपनी सांप्रदायिकता की काली सूरत दिखा दी है- राज-कर्मी सियारों।
हम यह फैसला नहीं देते कि दोषी कौन है इन दुष्कर्मोंमें।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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