हाथरस,हाथरस......क्या यह राजनीतिक-गिद्धता घिनौन की निक्रष्टतम दुर्गंध बनकर रह जाये गी ।क्या अपराधियों का मजहब,धर्म यह फैसला करे गा कि किस आरोपित को फांसी हो किस की नहीं।क्या यह शर्म से खारिज नेता वनने के भुक्खड़ नवसिखिये चोर, बलरामपुर का रास्ता नहीं जानते।क्या इन्हे राजनीतिक संकीर्णता ने दिमागी लकबाग्रस्त कर दिया है......।सालों ,वलरामपुरमें यही दुर्घटना मुसलमानों ने की है......बह भी देखो......सेकुलरों-तुमने अपनी सांप्रदायिकता की काली सूरत दिखा दी है- राज-कर्मी सियारों।

हम यह फैसला नहीं देते कि दोषी कौन है इन दुष्कर्मोंमें।

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