भारत विभिन्न धर्मों की प्रयोगशाला है,इसका कारण यहां पनपी सर्व-कल्याणकारी सनातन-धर्मी संस्कृति है जिसमें कोई सामूहिक धर्म-शत्रु नहीं है।इस संस्कृति के कारण यहां निर्बाध वैचारिक स्वतंत्रता और दूसरी मज़हबी असहिष्णुता का भी समावेश जारी रहा,पिछले बारह सौ सालों से।परंतु जिस तरह किसी स्वस्थ -उसी लकड़ी को कोई आग जलाकर राख कर देती है ,जिस पर उसका वजूद कायम है,उसी तरह जिन सेमेटिक धर्मों को भारत की सनातन -संस्कृति ने पनपने का वातावरण प्रदान किया,इन सेमेटिकों नें उसी संस्कृति को खत्म करने की हिंसात्मक कोशिश की ,जिसमें बे सफल भी रहे और जो आज भी जारी है।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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