भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट
कितना विचित्र लगता है कि राहुल अभी भी सफलता के इंदिरा-कालीन लटकों झटकों के वल पर ही राजनीतिक स्टंटबाजी में मुग्ध हैं ,जब कि मतदाता इन्ही सब से ऊब कर विकल्प की तलाश में बीजेपी के बास्तविक और ठोस राजनीति की पसंद तक पहुंचा।अव इलाइट,सितारा राजनीति नकार के लक्ष्य पर है पर हां ,भारत का मुसलमान अभी भी देश की मुख्य मनोभूमि के खिलाफ ऐसी ही राजनीति और राजनीतिज्ञों को,नितांत मजहबी कुत्सा के चलते,पसंद कर रहा है जो कि अमेठी से वायनाड को पलायन ने पूरी तरह सिद्ध किया।क्या कांग्रेस कोट के ऊपर से जनेऊ संस्करण पर ही भरोसा करके वहुसंख्यक वोटर को चूतिया वनाने में सफल होने के सपनों तक रह जाये गी।भाई- अपने अंधे समर्थकों को इतना निराश भी न करें।
bahut he sunger geet
जवाब देंहटाएंmishra je ko sarsati je nay sawaym prasad dia
जवाब देंहटाएं