याद आता है,गांव कभी इस कुलक्षण (बलात्कार) से मुक्त थे।शहर किसी सीमा तक योन शुचिता में शिथिलता के उदाहरण ,कभी कभी हुआ करते थे।दंगा या मुस्लिम व्यबहार -जैसे मोपला,कश्मीर,वंगलादेश......या फिर लव जेहाद की कथाओं से इतर कुछ अधिक से गांव परिचित नहीं थे परंतु इस बीच एक व्यवस्था ध्वस्त हो गई-पूरोहित।पुरोहित पूरे गांव में अपने वचनों,व्यवहारों,अनुष्ठानों,शुचितापूर्ण-चरित्र,संपूर्ण समर्पण की आभा में पूरे गांव को वांधता था और किसी भी वच्चे को ,चाहें किसी का-थोड़ी डांट दे सकता था।बह ्यबस्था ध्वस्त ही नहीं हुई वल्कि तिरस्कार के लक्ष्य पर है......तो अव कोई नई व्यवस्था वनी नहीं जो है वह इस कुत्सा को किसी रूप में नियंत्रित नहीं वल्कि वढ़ावा देती है। अव हमारे नेता ही आदर्श है जो कि वहुत घटिया हैं।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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