संपूर्ण हिंदी कविता-साहित्य और किसी सीमा तक भारतीय कविता पढ़ने के बाद यह देखा कि जैसे भारतीय कवि को न तो मध्य काल के दुर्गंध से भरे नबावी अत्याचार से मतलब है और न देश के बंटबारे से उगे खूनी पाकिस्तान और उसके पार्श्व में होता पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के बंशनाश की जेहादी कोशिश से।यहां तक कि कश्मीर में पूरे दशक में होने वाले हिंदू नर-संहार और भय-पलायन से भी कोई संवेदना भारतीय कवि को नहीं।क्या यह संवेदन शील जमात सिर्फ व्यक्तिगत दुखों पर रोना जानती है,या यह वर्ग इतना कायर है कि इसे सव ड्राइंग-रूम की सुरक्षित दीबारों में ही कविता आ पाती है।हां ,अपबाद है तो एक कविता श्री तरुण विजय जी की जिसमें तत्कालीन नेताओं पर ब्लेड जैसा कटाक्ष है और कत्ल होते कश्मीरी हिंदुओं की वेदना।उन्हे साहसिक प्रणाम।
भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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