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  लिखने में, कितने ही विकल्प, स्वयं को ,प्रस्तुत करने में, हमें खासी मुसीवत में डाल दे ते हैं। क्यों कि- गिरा अनयन,नयन विनु वानी।
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  जब सागर मैरीना वन जाता था, सोचने में आता, अगर मेरा भी जहाज,इन अथाह गहराइयों में डूब जाय, तो तुम अपनी एक पुकार से,मुझे , किनारे तक, आने की शक्ति एवं प्रेरणा दोगी।
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  कभी कभी कुछ ऐसा भी हुआ कि मैने स्वयं को विसर्जित करके जिंदगी जी......क्या आप के साथ ऐसा हुआ, क्या कभी आप ने खुद को बाहर से छुआ।
  जिंदगी सिर्फ बीतते समय के साथ वढ़ते बैंक बैलेंस का ही नाम नहीं है।इसमें एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान उस पलायन का है जो कुछ लोग -कड़ी शराव,कुछ लोग -माल-,कुछ लोग ऊंचे पहाड़ो,गहरी घाटियों,नक्षत्रों और कुछ गहराती शाम के आगमन में भी ढ़ूंढ़ लेने के प्रयत्नों में लगे पाये जाते हैं।जीवन का यही वर्णक्रम गीता में माया कहा गया....।और ,बच्चन, जी इसी माया को यूं स्वीकारते हैं- तेरी दुनियां को प्यार किया है मैने। , ग्यानी ने मुझसे कहा कि यह माया है, तूने नासमझी में धोखा खाया है, रस्सी का टुकड़ा है गजरा लगता है, यह सत्य नहीं है सपने की छाया है, जादूगर यह अपराध न कहलाया है, तेरा जादू स्वीकार किया है मैने।तेरी दुनियां को........। तो मैं वस यही करने चला हूं इस व्लाग के माध्यम से।
  समय का चरित्र मेडिकल डाक्टर्स के प्रति वढ़ती अनास्था की ओर उन्मुख है।कोरोना के संदर्भ में वारियर्स का विचार मोदी जी की शह पाकर किसी सीमा तक डाक्टर्स की छवि संभालने में वहुत सहायक हुआ ,पर जो दुर्घटनायें डाक्टर्स के साथ होना शुरू हो गईं हैं वे शुभ संकेत नहीं हैं।वास्तबिकता है कि चिकित्सा-व्यय इस सीमा तक वढ़ गया है कि मरीज को असहनीय हो जा रहा है....तव उसके तीमारदारों में रोष होना स्वाभाविक है।हमें इस सच्चाई को समझना होगा कि किसी चिकित्सा-सुविधा की कीमत क्या है।हम दो बातें साथ साथ नहीं कह सकते-1.ओहो ,इतने टेस्ट वता देते हैं कि.......2.अरे टेस्ट कराये विना ही दवा शुरू कर दी,और नतीजा......।हम डाक्टर्स के बारे में विभाजित मस्तिष्क से सोंचते हैं, केवल आर्थिक विपन्नता के कारण।डाक्टर्स ठीक से काम कर सकें ,उसके लिये पहली आवश्यकता है निर्भय होना,तो उनकी सुरक्षा पहली आवश्यकता है।आज एक डाक्टर वनाने में पांच से दस करोड़ रुपया खर्च होता है।हम यह सच कैसे भूल सकते हैं।
  किसी भी प्रविधि जो स्वतंत्रता दिलाने में सहायक होती.....की तलाश में गांधी ने संपूर्ण देश की यात्रा की।उन्हों ने देखा भीषण गरीबी,दुर्वलता-शारीरिक ही नहीं मानसिक व सांस्कृतिक भी।यहां मानसिक गरीबी का अर्थ है -किसी भी युद्ध जो विदेशी सत्ता से भिड़ने के लिये जरूरी था..की सन्नद्धता के प्रति जागरूकता,उत्सुकता,तैयारी।बह गांधी को कहीं नहीं मिली।1857 की हार ने किसी विजय की संभावना,आमने सामने के आयुध -युद्ध के माध्यम से प्राप्त करने की ,पूरी तरह खत्म कर दी थी।गांधी को यह लगा कि अव सत्याग्रह-आंदोलन जो यहां की डरी,सहमी जनता के लिये अनुकूल थी,ही अंतिम विकल्प है और उन्होंने फिर वही अपनाया।नेता जी सुभाष के आह्वान पर-तुम मुझे खून दो मै तुम्हे.....कितने लोग खून देने हेतु आगे आये.....।यहां के आम आदमीं में वह खून था ही नहीं...।जो खून दे रहे थे वे डकैत कहे गये। गांधी जी का मूल्यांकन आज ड्राइंगरूम में बैठ कर नहीं किया जा सकता,बिना तत्कालीनता को पूरा समझे।
  भारत एकमात्र ऐसा देश है जो अपने आक्रांताओं,जिन्हों ने उनको उजाड़ा,कत्ल किया,महिलाओं को वंदी वनाकर बाजारों में बेंचा,बलात्कार किये ,मंदिर तोड़े और उनके अपने धर्म सनातन हिंदुत्व को मिटाने में ह्रदयविदारक न्रसंसता की,.....को महिमामंडित करने की कायरता तक जाता है, और इतिहास लेखन में उनके भारतीय कृषि इत्यादि में किये नगण्य योगदान पर पृष्ठ पर प्रष्ठ वरबाद करता है,मज़ारों पर मत्था टेकता है,उन आक्रांताओं द्वारा किये गये सांस्क्रतिक,सामाजिक,आध्यात्मिक और आर्थिक विनाश का आंकलन करके उनके आधुनिक अवतारों को अपराधी सावित करना तो वहुत दूर की वात है।
सारी की सिलवट- सिलवट में , किसने रच दी गंगालहरी, चितवन-चितवन मे आरेखित, रंगोली सी गहरी -गहरी, अवतरित हो रहे नख-शिख में सारे शोभन ,सारे पावन। सीपिया वरन,मंगलमय तन... .....।श्री भारत भूषन।
  सीपिया वरन,मंगलमय तन, जीवन-दर्शन वांचते नयन...... वरदानों से उजले-उजले, कर्पूरी वांहों के घेरे, इंगुरी हंथेली पर जैसे, लिक्खे हों भाग्यलेख मेरे, कुछ पल ठहरो तो पूजा में बिखरा दूं अंजुरे भरे सुमन। सीपिया वरन,मंगलमय तन.....श्री भारत भूषन।
  सीपिया वरन मंगलमय तन, जीवन-दर्शन वांचते नयन, संस्कृत सूत्रों जैसी अलकें है भाल चंद्रमा का वचपन, हल्के जमुनाये होठों पर दीये की लौ सी मुस्कानें, धूपिया कपोलों पर रोली से शुभम् लिखा चंदरिमा ने, सम्मुख हो तो आरती जगे,सुधि में हो तो चंदन चंदन। सीपिया वरन.........।श्री भारत भूषन।से साभार।
  बचपन में जिया अनंत समय, योवन में सदियां जी डालीं, फिर वर्ष जिय,फिर माह जिये, अब जीवन पल पल जीता हूं, यादों का संवल जीता हूं।
  चीन ने 1962 में भारत को नहीं हराया था।भारत को तत्कालीन रक्षामंत्री ,कम्यूनिष्ट कृष्न मेनन ने तथा राइफल 3.3 ने हराया था।फिर भी चीन भारतीय सेना के जीबट से इतने आक्रान्त थे कि बाद तक कई प्रकार से चीनियों ने इसे स्वीकार किया।॓दस दस को एक ने मारा ॔मात्र गीत की पंक्ति नहीं है,यह वास्तविकता थी।जहां तक 3.3 की बात ,तो जब चीनी स्वचालित एके47 से लड़ रहे थे ,हम प्रथम विश्व-युद्ध की 3.3 से।यह भारतीय आयुध-निर्माणी संगठन की बड़ी लापरबाही थी। अव चीन की विस्तारबादी हरामपंथी को पहली बार धक्का लगा है।विश्वास किया जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में चीन किसी मिसएडवेंचर से अपनी महान प्रगति को वड़े खतरे में डाल कर आत्महत्या की तरफ नहींवढ़े गा।
  कोविड-19 हमें जीवन की क्षण-भंगुरता की शाश्वत सत्यता से एक बार फिर से याद दिलाने का माध्यम वन गया है।माना जा सकता है कि हम भौतिक प्रगति के सोपानों को अपने स्केल पर किसी भी स्तर तक पहुच लें पर चीन के उदाहरण ने सिद्ध किया कि कम्यूनिज्म और डिक्टेटरशिप भी वस मुखौटे हैं जब कि प्रकृति इन मुखौटों के अंदर झांकती कुरूपता को दो पल में उजागर कर देती है।हम जीवन की उस शैली में हैं कि जिसमें भय,अकेलापन,निष्क्रियता,मृत्यु,एकरसता की ऊव,असहाय-स्थिति,इत्यादि जीवन के संपूर्ण आयाम संकुचित और पंगु से हो गये हैं।यह हमें कितनी चुनौती पूर्ण लगता है कि सारी चुनौतियां भी मूर्छित हैं।फिर भी -मोदी है तो मुमकिन.........।
  जीवन वहुत सरल है-कहने वाले ,संभवतः,जीवन को विना ठीक से देखे ,कह दे रहे हैं।हम इतना कम समय व क्षमता लेकर पैदा हुये हैं कि जीवन को समझने की इच्छा पैदा होते होते आधी जिंदगी बीत चुकती है और हम जब जीवन को देखते हैं तो वह करोड़ों करोड़ वर्षों का इतिहास संजोये मिलता है।दर्शन के प्रयत्न नाकाफी लगने लगे हैं,विज्ञान के दावे सिर्फ कुछ प्रथम उत्तरों तक सीमित हैं।अव समय वह है कि दर्शन ,विज्ञान के आगे नहीं ,पीछे है।अव हमें जीवन को समझने के लिये नये दर्शन की जरूरत है,जब कि हम सातवीं शताव्दी को ज्ञान की अंतिम शताव्दी मानने की नादानी में जीवित हैं।
  हम अपने अनुभवों की गठरी ,वहुत बार जैसी की तैसी किसी अपने जूनियर,पुत्र,मित्र,शिष्य या किसी के भी सिर पर रख कर कृतकार्य होने की गलती करते ,अनायास देखे जा सकते हैं,जब कि वास्तविकता यह है कि हमारे वे अनुभव ,अधिकांश बीते समय की कुछ स्म्रतियां मात्र हैं जिनका दार्शनिक पक्ष वहुत ,आज के संदर्भ मे पुराना पड़ चुका हो सकता है और जिसमें आज के युवा की वहुत सीमित या शून्य रुचि हो सकती है।आयु-सम्पन्न लोग ,इसीलिये अगली पीढ़ी को,पथ-हीन तक वताने की नादानी तक पहुंचते देखे जा सकते हैं ,हमें यह देखना होगा कि आनेवाला कल बीते कल से सदैव अधिक सुंदर होगा।हां ,मै यह बात, कोरोना के इस कठिन समय सामने ,अपने कुरूपतम भंगिमा में ,होने की सच्चाई के वाबज़ूद कहता हूं।
  बुद्धिमान अपनी बुद्धिमत्ता की सीमा और अपनी मूर्खता का प्रारम्भ जानता है,जब कि मूर्ख सिर्फ अपनी बुद्धमत्ता ही जानता है।
  वयोबृद्ध ,युवाओं को किसी सीमा तक पहचानता है क्यों कि वह 15 से 35 तक युवा था और स्वयं के हजारों प्रारूप उसके मन मस्तिष्क में सुरक्षित हैं,जव कि युवा बृद्ध को वहुत कम जानता है क्योंकि वह अभी बृद्ध हुआ नहीं है।एक दूसरे के संवंधों में पनपे संकट के पीछे यह सच मूल में है,जिसे हमें आंकलन में लेना ही चाहिये।
 कविता वही है जो स्वयं को संवोधित हो ।एक्ट्रोवर्ट कविता ,असल में वयान है,जो किसी को भी संवोधित हो सकती है और वयानवाजी .....नेतागीरी के निकट है।
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  krishn adhar mishra ke geet krishn adhar 1  /  11 ▶ 2:41 NOW PLAYING ऐसा कुछ कर गई........-कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 2 3:42 NOW PLAYING मिलन के गान मेरे.........-कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 3 2:41 NOW PLAYING ऐसा कुछ कर गई........-कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 4 2:55 NOW PLAYING तुम करो हास.......कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 5 3:38 NOW PLAYING मै नहीं चाहता फिर से खोना मन..........कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 6 3:33 NOW PLAYING वन कृष्ण कर दिये तुमने सारे मोह भंग........कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 7 3:12 NOW PLAYING बची चिनगरियों को फूंक कर अंगार करना है ...........कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 8 3:11 NOW PLAYING अभी मै प्रेम मय हूं..........कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 9 3:07 NOW PLAYING गीत जो जन्मा अभी-कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 10 2:12 NOW PLAYING देख लो जिंदगी को नयन भर अभी..........।कृष्णाधार मिश्र के गीत। krishn adhar 11 3:24 NOW PLAYING गमक उठे गंध के म्रदंग..। कृष्णाधार मिश्र के गीत kr...