आज दुनियां के देशों में संवंधों को लेकर अभूतपूर्व संकट है।कोरोना से त्रस्त देश,चीन की ओर आंखें तरेर रहे हैं।चीन पागल कुत्ते की तरह कभी इस पर कभी उस पर भौंक रहा है।फ्रांस ने असहिष्णु,जहरीली फुफकारों से लैस मुस्लिम आक्रमकता एवं हिंसा को ललकार दिया है,जिससे दुनियां ,1911-13 शताव्दियों के क्रूसेडी समय में पहुंच गया है।पाकिस्तान ,आधुनिकता और इस्लामिक जेहाद के बीच में खड़ा हांफ रहा है।कुल मिलाकर तीसरे वर्ल्ड वार की संभावनाओं के निकट पहुंची दुनियां निश्चित ही पहले मुस्लिम वैचारिक अधिष्ठान के मानवता रहित पक्ष से दो दो हाथ करने के अधिक निकट है।भविष्य की संभावनाओं को सकारात्मक वनाने में,इस तरह,संपूर्ण विवेकबान तबके को जागरूक रहना है,नहीं तो विनाश संभव है।
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हमारी अहिंसा से हम हारे,क्यों कि हम भीषण क्रूर लोगों से लड़ रहे थे।अब हमें उतनी ही क्रूरता से लड़ना होगा,तैयारी और मानसिकता वनानी होगी,अन्यथा हम फिर हारें गे।संगठित होना अतिरिक्त गारंटी होगी।दार्शनिक स्तर पर बे हारकर भी अपनी हिंसा और क्रूरता से डरायें गे ,जो उनका पुराना तरीका है,उनका शायर कहता है-तुम्हारी हथेली पे जान थोड़ई है.....मतलब तुम कायर हो,हम नहीं।
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सारा भारतीय समाज,भारतीय समस्त प्रशासन तंत्र,सारी भारतीय सरकारी शक्ति एवं दम खम कुल मिलाकर भी एक पूरी तरह असंदिग्ध कत्ली को तुरंत उचित सजा देने मे असमर्थ है।यह लाचारी वहुत गंभीर और ह्रदय-बिदारक हैऔर हमारी ओर व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ कटाक्ष कर रही है।यह समाज कितना क्रूर और साथ ही पंगु,बिकलांग और निष्क्रिय भी कि जान साफ उजाले में ,एक निरपराध,लड़की की लेली जातीहै और हम अदालत की नौटंकी करने के लिये विबश हैं।यह कैसा ब्यंग्य है उस पर जिसकी जान चली गई।क्या कानून में उचित संशोधन करके ऐसी जघन्यता को तुरंत सजा दिलाने का प्रावधान होना ,ऐसे असहिष्णु समाज में, परम आवश्यक नहीं है।
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हाथरस.हाथरस.हाथरस-क्या मखौल है।इसी तरह की एक दर्जन के लगभग अन्य घटनाओं का संज्ञान लेने में यह क्षद्म-रूपी नेता(बिरोधी) कहां मर गये हैं।बिशेषकर जहां अपराधी मुस्लिम है।क्या इन वेशर्मों को इतना भेदभाव करते जरा भी शर्म नहीं आती।यह क्या उनके न्याय-प्रियता का द्योतक है।इनको अगर किसी उत्तरदायी पद दे दिया जाय तव क्या इन हरामखोरों से किसी न्याय की उम्मीद की जा सकती है।यह वास्तव में स्वयं अनपढ़,और अपराधी चरित्र के लोग हैं ,इन्हे न्याय,अन्याय नहीं,अपनी घटिया नेतागीरी को और स्थापित करने का गर्हित उद्देश्य छिपा है।देखा जाय तो यह स्वयं दोहरा व्यवहार करने के साफ अपराधी हैं,जिसकी इन्हे सजा मिलनी जरूरी है।
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भारतीय राजनीति स्वयं अन्याय और अनाचारियों से भरी पड़ी है।कुछ गुन्डों ने स्वयं को वचाने के लिये खुद नेता वन जाने का आसान तरीका अपना कर सारी भारतीय आदर्शबादियों के मुंह पर थूक दिया और समस्त कर्म-सिद्धान्त की तौहीन कर दी।यह काम कांग्रेस के साठ साला शासन में खूब फला फूला और योगी जी के -गुन्डा ध्वंसीकरण के चार साला अभियान के सुपरिणाम,उपस्थित परिस्थितियों में,बहुत सीमित हैं।मैने स्वयं माताओं को-हम तो अपने बेटे को गुण्डा वनायें गे-कहते सुना,जैसे यह भी कैरियर चुनाव का विकल्प हो।क्या यह स्थिति किसी समाज की निम्नतम स्थिति तक गिर जाने का प्रतीक नहीं।क्या नकारात्मक समाज की यह स्वीकृति नहीं। योगी जी का यूपी -अभियान राष्ट्रीय स्तर पर अपनाये जाने की सर्वोपरि आवश्यकता है।(यद्दपि यह प्रविधि सिर्फ गंदी देह को सुंदर कपड़ों से सजाने के प्रयत्न के वरावर है,फिर भी आवश्यक है।)
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भाई चारा-का संदर्भ निश्चित ही हिंदू और मुसलमान के बीच संवंधो को लेकर ही संभवतः पाकिस्तान वनने के बाद ज्यादा ही रटा जाने बाला और एक कांग्रेसी,कम्यूनिष्ट,कम्यूनल त्रिगुटी नारा है।क्या यह इस बात का संकेत नहीं कि यह भाई चारा अभी नहीं है,अन्यथा नारे की आवश्यकता ही क्या है।अगर होता तो यह निरर्थक होता।तो अगर भाई चारानहीं है तो क्या यह स्वाभाविक प्रश्न नही पैदा होता कि क्यों नहीं है।और क्या इस क्यों नहीं है की पूरी खोज-बीन,निर्णयात्मक बिंदुओं का निर्धारण और फिर उनका ही निराकरण नहीं जरूरी है।क्या इस पर व्यापक शोध नहीं होना चाहिये।क्या किसी में इतनी हिम्मत नहीं।क्या इसके पीछे किसी मजहबी घिनौन के बाहर आ जाने का भय तो नहीं।......सभी प्रश्न उत्तर चाहते हैं,बिना उत्तर खोजे यह भाई चारे के धोखे-धड़ी से कुछ फायदा नहीं होनेवाला।क्या हम इस चूतियाफंदी से बाहर आने का साहस दिखायें गे।
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अपने इतिहास काल से लेकर आधुनिक काल तक पर वहुत तार्किकता के सोंचा जाय तो तथाकथित भाई चारे के पीछे का भयानक धोखा और काले झूठ का सही पता लगता है।पूरे मुसलमानी बादशाहत काल में चालीस करोड़ हिंदुऔं का हलाल कत्ल हुआ,पच्चीस करोड़ हिंदू महिलाओं का वलात्कार हुआऔर हजार लाख करोड़ की संपत्ति लूट कर ले जाई गई,दस लाख मंदिर,मठ,संघाराम और विद्यालय तोड़े जलाये या उजाड़े गये।इन सव का हिसाव इन मुसलमानों को देना होगा क्यों कि इनकी प्रेरणायें वही हैं जिनके रहते आक्रमणकारी इस्लामियों ने यह सारा विध्वंस किया।
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संपूर्ण हिंदी कविता-साहित्य और किसी सीमा तक भारतीय कविता पढ़ने के बाद यह देखा कि जैसे भारतीय कवि को न तो मध्य काल के दुर्गंध से भरे नबावी अत्याचार से मतलब है और न देश के बंटबारे से उगे खूनी पाकिस्तान और उसके पार्श्व में होता पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के बंशनाश की जेहादी कोशिश से।यहां तक कि कश्मीर में पूरे दशक में होने वाले हिंदू नर-संहार और भय-पलायन से भी कोई संवेदना भारतीय कवि को नहीं।क्या यह संवेदन शील जमात सिर्फ व्यक्तिगत दुखों पर रोना जानती है,या यह वर्ग इतना कायर है कि इसे सव ड्राइंग-रूम की सुरक्षित दीबारों में ही कविता आ पाती है।हां ,अपबाद है तो एक कविता श्री तरुण विजय जी की जिसमें तत्कालीन नेताओं पर ब्लेड जैसा कटाक्ष है और कत्ल होते कश्मीरी हिंदुओं की वेदना।उन्हे साहसिक प्रणाम।
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भारतीय हिंदी साहित्य में वहुत दिन हो गये कोई बड़ी घटना नहीं हुई।लगता है उत्तर आधुनिकता-बादियों की मान्यता कि महा-आख्यानों का युग समाप्त हो गया------की सत्यता हिंदी का आज का लेखक चरितार्थ कर रहा है।शायद विश्व -साहित्य का स्वास्थ्य भी कमोबेश ऐसा ही है,क्योंकि 2020 का नोबेल पुरस्कार एक ऐसी अमेरिकन कवियित्री को मिला है जो 1943 की जन्मना है और लुइस ग्लूक के एक कविता संकलन पर दिया गया जो 2014 मे प्रकाशित हुआ। हिंदी मे संभवतः उर्वशी के बाद सन्नाटा है।यह स्थिति एक बड़े संकट का संकेत है या उत्तर-आधुनिक उत्तर। यूं भी अव कोई महान रचना की संभावनायें क्या इसलिये नहींहैं कि कोई महान घटना नहीं हो रही ,और वास्तव में महान घटना की संभावना का समय नहीं।
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भारत के लिये निकट भूत से( 2014) पीछे नौवीं शताव्दी तक का समय अभिषापित,दुर्भाग्य,लूट,कत्ल,विध्वंस,स्त्री व्यभिचार,वेश्यावृत्ति,उजाड़ और छीना झपटी से भरा रहा।यूं तो विदेशी हुक्मरान पैशाचिक धर्मी थे तो उनके निरंकुश कुकर्मों का भी कोई अन्त नहीं रहा।हजारों महिलाओं से भरे हरम सारे के सारे अपहृत लड़कियों के,जिसको चाहा कत्ल किया और घर ,असबाव,धन सव पर कब्जा।डाउसन ने अपने इतिहास में लिखा-अव(1850) जव इन नवाबों के ऊपर कम्पनी का अंकुश है ,तव ये किसी जघन्यता से नहीं चूकते तो इन्हों ने तव क्या किया होगा जब यह निरंकुश थे।हम कैसे कैसे कुत्सित समय की परवरिश हैं।अव हमें गाली मत दो कि हम नाकारे,कायर,रिश्वती,बेईमान हैं।
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बंद करो....ओ चैनेलकर्मियों यह अपराधियों कातिलों,अबैध धंधा वाले दुष्कर्मियों को वाहुवली कहना।यह बे लोग हैं जिन्हों ने न्यायप्रिय या सामान्य जिंदगी जीने के आदी लोगों के जीवन को नर्क वना कर अपनी कुत्सित गुंडई के वल पर यह गिरोही साम्राज्य वनाया है।देखा जाय तो तुम मीडियाकर्मी वही अपराध कर रहे हैं जो बहुत से तथाकथित इतिहासज्ञों ने भारत को लूट और कत्लों से बरबाद करने वाले आक्रमणकारियों की विभिन्न शब्दावली में प्रशस्ति गाई है।
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हाथरस,हाथरस......क्या यह राजनीतिक-गिद्धता घिनौन की निक्रष्टतम दुर्गंध बनकर रह जाये गी ।क्या अपराधियों का मजहब,धर्म यह फैसला करे गा कि किस आरोपित को फांसी हो किस की नहीं।क्या यह शर्म से खारिज नेता वनने के भुक्खड़ नवसिखिये चोर, बलरामपुर का रास्ता नहीं जानते।क्या इन्हे राजनीतिक संकीर्णता ने दिमागी लकबाग्रस्त कर दिया है......।सालों ,वलरामपुरमें यही दुर्घटना मुसलमानों ने की है......बह भी देखो......सेकुलरों-तुमने अपनी सांप्रदायिकता की काली सूरत दिखा दी है- राज-कर्मी सियारों। हम यह फैसला नहीं देते कि दोषी कौन है इन दुष्कर्मोंमें।
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संकल्प को सफलता की अद्भुत परिणति तक ले जाना,योजना को योग्यता के सहयोग से युगान्तकारी योग के युग- परिवर्तन का माध्यम वनाना,साहस को साहसिकता की कल्पांत संभावना वनाना,दुनियां को उसकी दुबिधा से निकाल कर भारत-सापेक्षता प्रदान करना,संपूर्ण विश्व में व्याप्त भारत-वंशियों को भारत की भाव-भूमि से जोड़कर अभूतपूर्व एकता,सौहार्द,सौंदर्य का सृजन करना,आहत,कायर,निराश,भग्न-भारत को उसकी संपूर्ण शक्तियों से परिचित कराना........क्या कोई मोदी जी की इन आकाशीय उपलव्धियों को भुला पाये गा।ऐ भारत ॥ सावधान-पीछे मत मुड़ना,क्यों कि वहां बह खांईं है कि वस आत्महत्या ही विकल्प होगा।
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कितना विचित्र लगता है कि राहुल अभी भी सफलता के इंदिरा-कालीन लटकों झटकों के वल पर ही राजनीतिक स्टंटबाजी में मुग्ध हैं ,जब कि मतदाता इन्ही सब से ऊब कर विकल्प की तलाश में बीजेपी के बास्तविक और ठोस राजनीति की पसंद तक पहुंचा।अव इलाइट,सितारा राजनीति नकार के लक्ष्य पर है पर हां ,भारत का मुसलमान अभी भी देश की मुख्य मनोभूमि के खिलाफ ऐसी ही राजनीति और राजनीतिज्ञों को,नितांत मजहबी कुत्सा के चलते,पसंद कर रहा है जो कि अमेठी से वायनाड को पलायन ने पूरी तरह सिद्ध किया।क्या कांग्रेस कोट के ऊपर से जनेऊ संस्करण पर ही भरोसा करके वहुसंख्यक वोटर को चूतिया वनाने में सफल होने के सपनों तक रह जाये गी।भाई- अपने अंधे समर्थकों को इतना निराश भी न करें।
Brahmin Genocide: In the name of Gandhi I Prakhar Shrivastava I Khari Ba...
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प्रेम के हजारों शेड्स हैं।यह रंग शुद्ध स्वार्थ से प्रारंभ होकर(प्रेम का प्राकृतिक रंग यही है)परम निःस्वार्थ की सांस्कृतिक यात्रा में वहुत दूर तक जाता है।हमने सांस्कृतिक यात्रा में ही सारे संवंधियों ,नाते रिश्तों,मित्र,सहायक,सहानुभूति,सौहार्द,धार्मिक,मजहबी प्रेम की नींव रखी,जिसमें घ्रणा भी अपने खालिस मजहबी उन्माद के साथ उपस्थित है।बिचित्र लगता है कि मजहबी घ्रणा के आधार पर प्रतिकृिया स्वरूप मजहबी प्रेम(यह सहयोग है जो प्रेम में पतित हो गया)की नींव रखी गई और इस आधार पर दुनियां को वांटा गया। कवियों, साहित्यकारों और कहीं कहीं दार्शनिकों ने भी प्रेम को उसकी बाहरी कीचड़ को साफ करके या उसकी उपेक्षा करते हुये थोड़े अंदर की आर्द्रता के साथ वर्णन किया ,जो उनके कल्पना जगत के आदर्श की रक्षा करता हुआ सामने आता है।हां ,जरूर.......एक विशिष्ट आयु की संवेगी भावनाओं में अनुभव, जिन्है प्लेटोनिक लव कह के शेष से अलग किया गया है,जो लगभग नितांत प्रति-लिंगी आधार पर होते हैं, को भी जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं में से हैं,जो अव लव -जेहाद की मजहवी सीमाओं को छूती है,माना जा सकता है।यह अनुभूति अधिकांश कविता ...
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याद आता है,गांव कभी इस कुलक्षण (बलात्कार) से मुक्त थे।शहर किसी सीमा तक योन शुचिता में शिथिलता के उदाहरण ,कभी कभी हुआ करते थे।दंगा या मुस्लिम व्यबहार -जैसे मोपला,कश्मीर,वंगलादेश......या फिर लव जेहाद की कथाओं से इतर कुछ अधिक से गांव परिचित नहीं थे परंतु इस बीच एक व्यवस्था ध्वस्त हो गई-पूरोहित।पुरोहित पूरे गांव में अपने वचनों,व्यवहारों,अनुष्ठानों,शुचितापूर्ण-चरित्र,संपूर्ण समर्पण की आभा में पूरे गांव को वांधता था और किसी भी वच्चे को ,चाहें किसी का-थोड़ी डांट दे सकता था।बह ्यबस्था ध्वस्त ही नहीं हुई वल्कि तिरस्कार के लक्ष्य पर है......तो अव कोई नई व्यवस्था वनी नहीं जो है वह इस कुत्सा को किसी रूप में नियंत्रित नहीं वल्कि वढ़ावा देती है। अव हमारे नेता ही आदर्श है जो कि वहुत घटिया हैं।