आज उन तुक्ष लोगों की याद आ गई जो कहते थे -यह मंदिर नहीं वनायेंगे ,यह इस वहाने लगातार राजनीति करके श्री राम के वहाने चुनाव बैतरणी पार करते रहने का इंतजाम करते रहें गें। वास्तव में यह कहने वालों के पैमाने में वह स्केल है ही नहीं जिससे मोदी जी को नापा जा सके।यह वही घटिया लोग हैं जो सिर्फ वहानेबाजी की राजनीति करने के आदी हैं क्योंकि इनकी राजनीति का उद्देश्य ही स्वयं-केन्द्रित है।मुसलमान को भी यह लोग इसलिये पसंद हैं कि वे अपने मजहवी एजेंडे के लिये खुला मैदान पाते हैं अपने वोट -शक्ति के एवज में। भारतीय राजनीति सत्तर साल से इन्हीं तुक्षताओं के चंगुल में फंसी रही और बिभिन्न चुनाव -संकीर्ण बीस,बाइस,दस,बारह सूत्रीय प्रोग्रामों की अल्पकालिक चूतियापे में चक्कर काटती रही।जब कि इस देश को दीर्घकालिक विज़नरी योजनाओं की जरूरत थी।
संदेश
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
श्री अहमद पटेल-अत्यंत संतुलित,इस्लामी पूर्वाग्रहों से मुक्त राजनीति,सौम्य,प्रभावी भाषा, गंभीर विमर्ष जैसी वहुत सी विभूतियों के धनी कांग्रेसी का निधन एक सुंदर स्थिति के जनक का अंत है।अव राहुल की गाली-राजनीति के युग में वे असहज और मिसफिट थे।उनको,उनके युग को श्रद्धांजलि। अभी अभी उनके नाम को लेकर कुछ बिचित्र अनुभूति हुई,और ऐसे समस्त नाम इसी शंका के दायरे में आ गये जो अरबी पेट के साथ हिंदू पारंपरिक दिमाक से लैस हैं।यह एक गहरे शातिराना उद्देश्य से किया जाता है,जिससे यह बात लगातार साबित की जा सके कि हिंदू से मुसलमान वनने की प्रक्रिया चल ही रही है और जो भी हिंदू हैं ,मुसलमान वनने की संभावना ऐसे ही है जैसे अहमद पटेल,मुनव्वर राना,मकबूल वट......।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
विश्व की कई दुष्ट घटनाओं का प्रति-उत्सर्ष देख कर मन कुछ मानव की अच्छाइयों के प्रति आश्वस्त हुआं।अजरबैजान-आर्मीनियां का संघर्ष रूस की मध्यस्थता....विश्वास होता है कि रूस किसी निश्चित परिणति जो उसके अनुकूल हो,की प्रतीक्षा में था इतनी बरबादी तक ।चीन का संयम उसका इरादा है या विवशता -या बिवशता का इरादा-समझ नहीं आ रहा पर बह एक हेकड़ी से लैस देश है जिसकी अकड़ अमेरिका-भारत की युति ने फीकी कर दी,चीन का उद्देश्य-कि कोरोना-विलेन के अपराध- कटघरे से बाहर आना,की पूर्ति के लिये उसने दुनिया को समेटते हुये तनाव के घेरे पैदा किये।उसे मालूम है कि निश्तित हार और अनिश्चित संहार उसे लगभग नष्ट ही कर देगा।इस्लामिक एजेण्डा अपनी रफ्तार पर है,कुछ भी हो सकता है,और दुर्घटनायें ऐतिहासिक स्पीड पकड़ सकतीं है।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
बिहार-तुम्हें क्या हो गया है।क्या तुम चन्द्रगुप्त मौर्य बाले ही हो.....उज्जैनी-अवन्तिका ने अपने को फिर भी चन्द्रगुप्त विकृमादित्य और कालिदास के अनुरूप कुछ वचा लिया पर बिहार तुम.......एक सजायाफ्ता भ्रष्टाचारी के नवीं फेल बेटे को.......थू।तुमने कुछ नहीं सोंचा,पर तुमने चलो कुछ शर्म की और उनको फिर लाये जो तुम्हे खुशहाली में लाने की कुछ तो कोशिशें करें गें।तुम्हारा वहुत उपकार।मेरा कुछ भी रिस्क पर नहीं फिर भी कल पूरे दिन पता नहीं क्यों मेरा मत्था गरम रहा।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
अरनव एक बार फिर-स्टेट गवर्नमेंट,महाराष्ट्र।एक संवैधानिक संस्था ।पत्रकार-एक स्तंभ जिसे प्रजातंत्र को उतनी ही जरूरत है जितनी स्टेट सरकार की।और जुडीशियरी..........भी।जब कोई सरकार प्रेस पर आक्रमण करती हैै तो जुडीशियरी को वहुत लापरबाही या ॓सुरक्षित॔ रहने ,करने की चक्करबाजी से मुक्त होना चाहिये।तुम नहीं सही,मौका आने पर कोई पागल भेंड़िया जुडीशियरी को,अरनवाइज़ कर देगा किसी दिन।तुम खुद ही तब कर लेना -सुरक्षित -रखने का यह खिलबाड़,अगर इस लायक छोड़े जाओ।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
अर्नव गोस्वामी-चीफ एडिटर रिप. भारत-क्या किसी प्रान्तीय सरकार को इतना तुक्ष होना चाहिये।क्या सरकार खुद के पापों,गलतियों,लापरबाहियों,निष्क्रियताओं, को बताने वालों के साथ शत्रुता पर,वह भी व्यक्तिगत स्तर पर उतर कर, एक स्ट्रीट गुंडे की भूमिका में आ सकती है।जब दाऊद इब्राहीम अपने साम्राज्य का,आतंकबाद का बिस्तारपूरी तरह गैरकानूनी तरीके से इसी महाराष्ट्र में दशकों तक करता रहा तब यह कांग्रेस सरकार और यह गन्ना माफिया -पबार क्या कर रहा था।यह ह्रदयबिदारक है कि एक राष्ट्रबादी चैनेल के चीफ एडिटर को प्रताड़ित किया जाय।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
फ्रांस-द ग्रेट नेपोलियन बाला,फ्रेंच रेवोल्यूशन बाला,दो विश्व युद्धों में प्रत्यक्ष जूझने बाला,ओलिवर-विल्बर बन्धुओं के पहले एयर प्लेन बाला......।नेपोलियन ने जब बहुत सीमित सेना लेकर इजिप्ट की मुस्लिम दर्प से लदी विशाल सेना को वस कुछ ही देर में परास्त कर दिया......इजिप्ट ने महसूस किया....बे व्यर्थ ही खुद को इस्लामी दर्प के झूठे कोहरे में उलझे थे।कैरो यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने लिखा-अव हम फ्रेन्च आर्मी की संगठित सेना,उनकी जीवन -शैली ही नहीं उनके कैवरे न्ृत्य भी पसंद करने लगे थे।.....क्या तब से जमाना और बड़े अंतर पर नहीं आ गया है।क्या टर्की एण्ड कम्पनी आत्म-हत्या की ओर नहीं बढ़ रहे।भारत में भी देश-घातक तवका जो अवतक मुखौटे ओढ़े था उघड़ गया है और उसके राक्षसी दांत दिख गये हैं।अतः ऐ भारत सावधान-यू आर ऐट सीरियस रिस्क।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
भारत विभिन्न धर्मों की प्रयोगशाला है,इसका कारण यहां पनपी सर्व-कल्याणकारी सनातन-धर्मी संस्कृति है जिसमें कोई सामूहिक धर्म-शत्रु नहीं है।इस संस्कृति के कारण यहां निर्बाध वैचारिक स्वतंत्रता और दूसरी मज़हबी असहिष्णुता का भी समावेश जारी रहा,पिछले बारह सौ सालों से।परंतु जिस तरह किसी स्वस्थ -उसी लकड़ी को कोई आग जलाकर राख कर देती है ,जिस पर उसका वजूद कायम है,उसी तरह जिन सेमेटिक धर्मों को भारत की सनातन -संस्कृति ने पनपने का वातावरण प्रदान किया,इन सेमेटिकों नें उसी संस्कृति को खत्म करने की हिंसात्मक कोशिश की ,जिसमें बे सफल भी रहे और जो आज भी जारी है।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
आज दुनियां के देशों में संवंधों को लेकर अभूतपूर्व संकट है।कोरोना से त्रस्त देश,चीन की ओर आंखें तरेर रहे हैं।चीन पागल कुत्ते की तरह कभी इस पर कभी उस पर भौंक रहा है।फ्रांस ने असहिष्णु,जहरीली फुफकारों से लैस मुस्लिम आक्रमकता एवं हिंसा को ललकार दिया है,जिससे दुनियां ,1911-13 शताव्दियों के क्रूसेडी समय में पहुंच गया है।पाकिस्तान ,आधुनिकता और इस्लामिक जेहाद के बीच में खड़ा हांफ रहा है।कुल मिलाकर तीसरे वर्ल्ड वार की संभावनाओं के निकट पहुंची दुनियां निश्चित ही पहले मुस्लिम वैचारिक अधिष्ठान के मानवता रहित पक्ष से दो दो हाथ करने के अधिक निकट है।भविष्य की संभावनाओं को सकारात्मक वनाने में,इस तरह,संपूर्ण विवेकबान तबके को जागरूक रहना है,नहीं तो विनाश संभव है।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
हमारी अहिंसा से हम हारे,क्यों कि हम भीषण क्रूर लोगों से लड़ रहे थे।अब हमें उतनी ही क्रूरता से लड़ना होगा,तैयारी और मानसिकता वनानी होगी,अन्यथा हम फिर हारें गे।संगठित होना अतिरिक्त गारंटी होगी।दार्शनिक स्तर पर बे हारकर भी अपनी हिंसा और क्रूरता से डरायें गे ,जो उनका पुराना तरीका है,उनका शायर कहता है-तुम्हारी हथेली पे जान थोड़ई है.....मतलब तुम कायर हो,हम नहीं।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
सारा भारतीय समाज,भारतीय समस्त प्रशासन तंत्र,सारी भारतीय सरकारी शक्ति एवं दम खम कुल मिलाकर भी एक पूरी तरह असंदिग्ध कत्ली को तुरंत उचित सजा देने मे असमर्थ है।यह लाचारी वहुत गंभीर और ह्रदय-बिदारक हैऔर हमारी ओर व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ कटाक्ष कर रही है।यह समाज कितना क्रूर और साथ ही पंगु,बिकलांग और निष्क्रिय भी कि जान साफ उजाले में ,एक निरपराध,लड़की की लेली जातीहै और हम अदालत की नौटंकी करने के लिये विबश हैं।यह कैसा ब्यंग्य है उस पर जिसकी जान चली गई।क्या कानून में उचित संशोधन करके ऐसी जघन्यता को तुरंत सजा दिलाने का प्रावधान होना ,ऐसे असहिष्णु समाज में, परम आवश्यक नहीं है।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
हाथरस.हाथरस.हाथरस-क्या मखौल है।इसी तरह की एक दर्जन के लगभग अन्य घटनाओं का संज्ञान लेने में यह क्षद्म-रूपी नेता(बिरोधी) कहां मर गये हैं।बिशेषकर जहां अपराधी मुस्लिम है।क्या इन वेशर्मों को इतना भेदभाव करते जरा भी शर्म नहीं आती।यह क्या उनके न्याय-प्रियता का द्योतक है।इनको अगर किसी उत्तरदायी पद दे दिया जाय तव क्या इन हरामखोरों से किसी न्याय की उम्मीद की जा सकती है।यह वास्तव में स्वयं अनपढ़,और अपराधी चरित्र के लोग हैं ,इन्हे न्याय,अन्याय नहीं,अपनी घटिया नेतागीरी को और स्थापित करने का गर्हित उद्देश्य छिपा है।देखा जाय तो यह स्वयं दोहरा व्यवहार करने के साफ अपराधी हैं,जिसकी इन्हे सजा मिलनी जरूरी है।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
भारतीय राजनीति स्वयं अन्याय और अनाचारियों से भरी पड़ी है।कुछ गुन्डों ने स्वयं को वचाने के लिये खुद नेता वन जाने का आसान तरीका अपना कर सारी भारतीय आदर्शबादियों के मुंह पर थूक दिया और समस्त कर्म-सिद्धान्त की तौहीन कर दी।यह काम कांग्रेस के साठ साला शासन में खूब फला फूला और योगी जी के -गुन्डा ध्वंसीकरण के चार साला अभियान के सुपरिणाम,उपस्थित परिस्थितियों में,बहुत सीमित हैं।मैने स्वयं माताओं को-हम तो अपने बेटे को गुण्डा वनायें गे-कहते सुना,जैसे यह भी कैरियर चुनाव का विकल्प हो।क्या यह स्थिति किसी समाज की निम्नतम स्थिति तक गिर जाने का प्रतीक नहीं।क्या नकारात्मक समाज की यह स्वीकृति नहीं। योगी जी का यूपी -अभियान राष्ट्रीय स्तर पर अपनाये जाने की सर्वोपरि आवश्यकता है।(यद्दपि यह प्रविधि सिर्फ गंदी देह को सुंदर कपड़ों से सजाने के प्रयत्न के वरावर है,फिर भी आवश्यक है।)
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
भाई चारा-का संदर्भ निश्चित ही हिंदू और मुसलमान के बीच संवंधो को लेकर ही संभवतः पाकिस्तान वनने के बाद ज्यादा ही रटा जाने बाला और एक कांग्रेसी,कम्यूनिष्ट,कम्यूनल त्रिगुटी नारा है।क्या यह इस बात का संकेत नहीं कि यह भाई चारा अभी नहीं है,अन्यथा नारे की आवश्यकता ही क्या है।अगर होता तो यह निरर्थक होता।तो अगर भाई चारानहीं है तो क्या यह स्वाभाविक प्रश्न नही पैदा होता कि क्यों नहीं है।और क्या इस क्यों नहीं है की पूरी खोज-बीन,निर्णयात्मक बिंदुओं का निर्धारण और फिर उनका ही निराकरण नहीं जरूरी है।क्या इस पर व्यापक शोध नहीं होना चाहिये।क्या किसी में इतनी हिम्मत नहीं।क्या इसके पीछे किसी मजहबी घिनौन के बाहर आ जाने का भय तो नहीं।......सभी प्रश्न उत्तर चाहते हैं,बिना उत्तर खोजे यह भाई चारे के धोखे-धड़ी से कुछ फायदा नहीं होनेवाला।क्या हम इस चूतियाफंदी से बाहर आने का साहस दिखायें गे।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
अपने इतिहास काल से लेकर आधुनिक काल तक पर वहुत तार्किकता के सोंचा जाय तो तथाकथित भाई चारे के पीछे का भयानक धोखा और काले झूठ का सही पता लगता है।पूरे मुसलमानी बादशाहत काल में चालीस करोड़ हिंदुऔं का हलाल कत्ल हुआ,पच्चीस करोड़ हिंदू महिलाओं का वलात्कार हुआऔर हजार लाख करोड़ की संपत्ति लूट कर ले जाई गई,दस लाख मंदिर,मठ,संघाराम और विद्यालय तोड़े जलाये या उजाड़े गये।इन सव का हिसाव इन मुसलमानों को देना होगा क्यों कि इनकी प्रेरणायें वही हैं जिनके रहते आक्रमणकारी इस्लामियों ने यह सारा विध्वंस किया।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
संपूर्ण हिंदी कविता-साहित्य और किसी सीमा तक भारतीय कविता पढ़ने के बाद यह देखा कि जैसे भारतीय कवि को न तो मध्य काल के दुर्गंध से भरे नबावी अत्याचार से मतलब है और न देश के बंटबारे से उगे खूनी पाकिस्तान और उसके पार्श्व में होता पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों के बंशनाश की जेहादी कोशिश से।यहां तक कि कश्मीर में पूरे दशक में होने वाले हिंदू नर-संहार और भय-पलायन से भी कोई संवेदना भारतीय कवि को नहीं।क्या यह संवेदन शील जमात सिर्फ व्यक्तिगत दुखों पर रोना जानती है,या यह वर्ग इतना कायर है कि इसे सव ड्राइंग-रूम की सुरक्षित दीबारों में ही कविता आ पाती है।हां ,अपबाद है तो एक कविता श्री तरुण विजय जी की जिसमें तत्कालीन नेताओं पर ब्लेड जैसा कटाक्ष है और कत्ल होते कश्मीरी हिंदुओं की वेदना।उन्हे साहसिक प्रणाम।